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शिव राम हरी राजगुरु...

आज 24 अगस्त भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी "हुतात्मा शिवराम हरि राजगुरु" का जन्मदिवस भी है, जिन्होनें भारतमाता को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए भगत सिंह और सुखदेव के साथ 23 मार्च 1931 को हँसते हँसते फाँसी का फंदा चूम लिया था| राजगुरु का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी सम्वत् 1965 (विक्रमी) तदनुसार 24 अगस्त सन् 1908 में पुणे के पास खेड़ नामक गाँव में हुआ था।

6 वर्ष की आयु में पिता का निधन हो जाने से इनका पालन पोषण इनकी माता और बड़े भैया ने किया | बहुत छोटी उम्र में ही ये वाराणसी विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने आ गये थे। इन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रंन्थों तथा वेदो का अध्ययन तो किया ही, साथ ही लघु सिद्धान्त कौमुदी जैसा क्लिष्ट ग्रन्थ बहुत कम आयु में कण्ठस्थ कर लिया था। उन्हें कसरत (व्यायाम) का बेहद शौक था और छत्रपति शिवाजी महाराज और उनकी छापामार युद्ध-शैली के बडे प्रशंसक थे।

 वाराणसी में ही वह भारतीय क्रांतिकारियों के साथ संपर्क में आए..  स्वभाव से उत्साही राजगुरू स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने के लिए इस आंदोलन में शामिल हुए और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) के सक्रिय सदस्य बन गए।
 राजगुरू... गांधी जी द्वारा चलाए गए अहिंसक सिविल अवज्ञा आंदोलन में विश्वास नहीं करते थे.  उनका मानना था कि उत्पीड़न के खिलाफ क्रूरता ब्रिटिश शासन के खिलाफ अधिक प्रभावी था, इसलिए वह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी में शामिल हुए थे, जिनका लक्ष्य भारत को किसी भी आवश्यक माध्यम से ब्रिटिश शासन से मुक्त करना था..  उन्होंने भारत की जनता को अंग्रेजों के क्रूर अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए इच्छुक नवयुवकों को इस क्रांतिकारी संगठन के साथ हाथ मिलाने का आग्रह किया.. 

राजगुरू को उनकी निडरता और अजेय साहस के लिए जाना जाता था..  उन्हें भगत सिंह की पार्टी के लोग “गनमैन” के नाम से पुकारते थे..!! 
सांडर्स वध के अपराध में राजगुरु ,सुखदेव और भगत सिंह को मृत्युदंड दिया गया और 23 मार्च 1931 को राजगुरु ने भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ लाहौर सेण्ट्रल जेल में फाँसी के तख्ते पर झूल कर अपने नाम को हिन्दुस्तान के अमर क्रांतिकारियों की सूची में हमेशा के साथ दर्ज करा दिया।

आज  उनकी जयंती पर उनको शत शत नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि|  महान स्वतंत्रता सेनानी का जन्मस्थान पुणे के पास स्थित खेड़ गाँव को अब हुतात्मा "राजगुरूनगर" के नाम से जानते है । 
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